मेरा परिचय एक ऐसे ‘बिहारी’ के रूप में है जो बचपन मे ही अपनी मिट्टी, अपने घर से दूर हो गया था। रोजी-रोटी के इंतजाम में मेरे माता-पिता को बिहार को छोड़कर दूर हैदराबाद आकर बसना पड़ा था। दोस्त-मित्र, हित-रिश्तेदार पीछे छोड़कर किसी अन्य राज्य में जाने का दर्द मेरे पिताजी किस तरह सहन कर पाए वह मेरा दिल जानता है। उन्हें अकेले इस पीड़ा को सहन करते देखना मेरे लिए भी किसी बुरे सपने सरीखा ही था। समय की तेज रफ़्तार ने देश के सभी राज्यों को बेहतर से बेहतर स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है लेकिन आज कई दशक बाद मेरा गृह राज्य, मेरा बिहार कहाँ खड़ा है?
मेरा परिचय ऐसे ही एक बदनसीब बिहारी का है जो अपने बिहार से बिछड़ने की पीड़ा और सियासी दलों के गैरजिम्मेदाराना रवैये को देखकर मृतप्राय स्थिति में तड़प रहा है। बिहार से बाहर मेरे माता-पिता ने मुझे बेहतर से बेहतर ज़िन्दगी देने की कोशिश की, अच्छी शिक्षा देकर काबिल बनाया और आज मैं एक सफल उद्यमी हूँ लेकिन एक टीस एक दर्द जो मुझे आज भी परेशान करती है और वह यह कि अभी तक मेरा बिहार उन सभी समस्याओं से जूझ रहा है जिसने मुझे और मेरे परिवार को दूसरे राज्य जाने को मजबूर किया। श्रम शक्ति के मामले में बात की जाए या संपदाओं की बात हो बिहार इस मामले में काफी समृद्ध है। लेकिन, यह स्थिति ठीक वैसे ही है जैसे धरती की गर्भ में कहीं अंधेरों में दबा हुआ हीरा।
एक सफल उद्यमी के तौर पर अपनी पहचान को मैं तब तक स्वीकार नहीं कर सकता जब तक मैं अपनी मिट्टी का कर्ज, अपनी जन्मभूमि का कर्ज न उतार लूं। तरैया विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की मेरी मंशा के पीछे मेरा वही दर्द है जो बचपन से मेरे सीने में उठ रही है। मैं अपनी जन्मभूमि और अपने राज्य को अन्य राज्यों से बेहतर स्थिति में देखना चाहता हूं। मैं यह चाहता हूं कि बिहार को कोई भी तिरस्कार भरे नज़रों से न देखे।
मैं कौन हूँ? इसका बेहतर उत्तर तभी मिल पायेगा जब मैं अपने संकल्पों पर खरा उतरते हुए अपनी माटी, अपने घर, अपने राज्य का कर्ज उतार पाऊंगा और बिहार को अग्रणी राज्यों की श्रृंखला में शामिल करने हेतु अपने छोटे से योगदान को सुनिश्चित कर सकूंगा।